।।छत्तीसगढ़ के बोरे-बासी।। आ सँगवारी खाबो बोरे-बासी, झन राख मन मे कोनो उदासी। जेन खाथे बोरे-बासी, उही जाथे मथुरा-काशी। तन-मन के रोग भगाना हे, बोरे- बासी खाना हे, किसान खाथे बोरे-बासी, करे बर जाथे खेत बियासी। राम-राम कहिस सियान, बोरे-बासी के धरिच ध्यान। डोकरी-डोकरा बहुत गोठियाथे, चटनी के संग बड़ मिठाथे। आगे हे फाल्गुन के गर्मी, अब कइसे करबो जी। चिंता करे के कोनो बात नई हे, पेट भर बासी भरबो जी।। आ सँगवारी बासी खाबो, ये जिनगी के मजा उडाबो। रामेश्वर साहू