न आस कम है न प्यास कम है जिंदगी में,
आज वक्त फिसलता जा रहा है क्योंकि।
लगता है रेत सी हो गई है जिंदगी।
यू तो बहुत हुई बारिश जिंदगी,
पर मेरी प्यास न बुझा सकी क्योकि।
लगता है रेत सी हो गई है जिंदगी।
दूर से अलग दिखता है,
जीवन का मरुस्थल क्योकि।
लगता है रेत सी हो गई है जिंदगी।
आंखों का धोखा रेगिस्तान में,
दूर से पानी का दिखना क्योकि।
लगता है रेत सी हो गई है जिंदगी।
बुझा न सका प्यास समुंदर भी,
अपने अंदर रख के क्योकि।
लगता है रेत सी हो गई है जिंदगी।
कोशिश की बहुत सी नदियों ने,
बहा लिया अपने साथ क्योकि।
लगता है रेत सी हो गई है जिंदगी।
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🥃🍸🥃अशवनी साहू🥃🍸🥃
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