कह रही है चिख-चिख कर,
राजनीति भी अपनी आप बीती।
होती पवित्र मैं भी गंगा की तरह,
अगर बेचा नही होता इन दलालो ने।
नोचा मुझे गोरो ने कुत्ते की तरह,
शिकायत मैं किससे करूँ, बेचा मेरे लालो ने।
मैंने सबको अपना सन्तान समझा,
दिया सबको सामान अधिकार।
पर मेरी ही सन्तानो ने,
गैर समझ किया मुझ पर अत्याचार।
उम्मीद थी मुझे मेरे सन्तानो से,
बनेंगे सहारा मेरी बुढापे का।
उपयोग कर अपने फायदे के लिए,
फेंक दिया मुझे मेरे लालो ने।
🎍अशवनी साहू🎍
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