अपने घर के छांव तले,
आ अब घर लौट चले।
आ अब घर लौट चले।
कब तक ऐसे भटकते रहेंगे,
हमारे अपनो से दूर रहकर,
आ अब घर लौट चले।
सुबह के भूले है हम,
शाम को नही कहेगा कि भुले,
आ अब घर लौट चले।
थी कुछ गलतफहमियां अपनो के बीच,
दूर कर लेंगे हम मिलकर गले,
आ अब घर लौट चले।
होंगी सारी गलती माफ,
आंसू होंगे खुशी नैनो तले,
आ अब घर लौट चले।
जो की थी गलतियां नही होगी,
खुशी के लिए कुछ झगड़े ही भले,
आ अब घर लौट चले।
🎍अशवनी साहू🎍
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