तोर लहुट-लहुट देखना मोला भुलात नइहे,
कर डारेव लाख उपाय फेर तोर सूरता जात नइहे।
का होंगे हावय मोला ये बात कोनो समझ पात नइहे,
तोर सूरता म बइहा होगेंव खाना-पीना खवात नइहे।
काबर अइसे देखत रहे तै मोला,
देखे बर आँखि तरस गे देख डारेव कोला।
वाह रे गजब के तोर आँखि कारी-कारी,
मोर नजरे-नजर म झूलते रही-रहिके बारी-बारी।
मृगनयनी हावय गोरी तोर नयना,
मोला सुध नइहे गवां डरेंव मोर चैना।
👁अशवनी साहू👁
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