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नीरपुर


पहाड़ो और घने जंगलों के बीचों-बीच आदिवासियों का बस्ती बसा हुआ था। जिसको लोग नीरपुर नाम से जानते थे ।
जहाँ पर लगभग 500 सौ लोग रहते थे,
जंगल और पहाड़ो के बीच होने के कारण वहां अन्य जगहों जैसी सुविधाएं नही थी पर नीरपुर चारो तरफ से नदियों से घिरा हुआ था जिसके कारण उस गांव की सुंदरता देखते ही बनती थी नदियों में बहने वाला पानी का नीले आसमान जैसा दिखाई पड़ता था।
उस नदी के किनारे भगवान शंकर की एक भव्यमन्दिर था जो बहुत ही प्राचीन और रहस्मयी था, जो दूर दूर तक बहुत प्रसिद्ध था।
लोग वहां पर दूर से दूर घूमने आते थे पर वहा के सब लोग अपना खेती-बड़ी का कार्य करने में व्यस्त रहते थे , वहां के लोगो वहां खूबसूरती और मंदिर से कोई लगाव नही था ।
लोग वहां आते थे घूम फिर कर वहाँ से चले जाते थे। और वहाँ के लोग इसी प्रकार से अपने जीवन को बिता रहे थे।
समय बीतता गया पर लोगो ने मंदिर को लेकर कोई ध्यान नही दिया वह मंदिर धीरे धीरे खण्डहर का रूप लेने लगा था  पर लोगो का वहां आना जाना लगा था,
और तभी एक दिन वहां पर एक साधु आया जो बहुत ही तेजस्वी था उनके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी।
मानो उनके माथे पर कोई दिप जल रहा हो।
यह बात वहाँ के लोगो मे आग की तरह फैल गई और सब लोग उस तपस्वी साधु की दर्शन के लिए दौड़ पड़े।
देखते ही देखते वहाँ पर भीड़ का सैलाब उमड़ पड़ा तभी साधु ने सोचा कि यही समय है जो कि यहां के लोगो को इस जगह के महत्व को समझाने का।
मौका देख साधु ने बोलना शुरू किया और लोगो से पूछा कि आप लोग इस जगह पर कितने समय से रह रहे है और इस गांव नीरपुर के बारे में आप लोग कितना जानते है।
लोगो ने बताया कि वह लोग लम्बे अरसे से रहते आ रहे है पर उनको उस जगह के बारे में जानकारी नही है।
साधु ने पुछा आप लोग इस मंदिर के बारे क्या जानते आप लोग मंदिर में पुजा करने क्यो नही आते आप लोग मन्दिर साफ सफाई और देखभाल क्यो नही करते ?
तो साधु ने वहा के लोगो समझाने की कोशिश की और बताया कि यह मंदिर बहुत ही प्राचीन मंदिर है जो मानव समाज की इच्छाओं को पूरा करने वाला है।
और इस मंदिर के कारण ही इस गांव में रह रहे लोगो के ऊपर कोई भी संकट नही आती है इस मंदिर का निर्माण राजा महाराजा के समय मे हुआ है भगवान भोलेनाथ उस समय पर यहाँ बैठकर साधना किया करते थे।
यहाँ पर जिसने भी पुजा करके मनोकामना मांगी उनको कभी निराशा हाथ नही लगी है,
यह मंदिर विभिन्न फलों को देने वाला है।
और इस गांव के चारो तरफ जो नदी बह रही है वो प्राचीन समय मे जब भगवान शिव यहाँ पर ध्यान करते थे,
उस बाद माता गंगा अपनी जल से उनकी चरण धोया करती थी यह नदियां गंगा जी का ही अंश है इस अवसर को आप लोग समझो और व्यर्थ न जाने दो।
इसी में पुरे गांव की भलाई है। अन्यथा आप लोगो को भगवान भोलेनाथ के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है।
पर नीरपुर गांव के लोगो को उस साधु की बात पर तनिक भी विश्वास नही हुआ और गांव के लोगो ने साधु का अपमान कर उनको गांव से भागने पर मजबूर कर दिया।
परंतु साधु के गांव से जाते ही अचानक उस गांव की सारी नदियां तालाब सब सुख गये। पुरा गांव नीरपुर से बंजरपुर बन गया।
पुरे गांव में सुखा पड़ गया हाहाकार मच गया तब लोगो को उस साधु की बात पर यकीन हुआ और अपनी नासमझी और नादानी के लिए शर्मिंदा होना पड़ा।
फिर अपनी गलती पर पछतावा करते हुए उस नीरपुर गांव के लोगो ने मंदिर की देखभाल करना शुरू किया।
भगवान भोलेनाथ की पुजा अर्चना की पर गांव में सुखा ही पड़ा रहा सालो बीत गए गांव में बारिश नही हुई  गांव की हरियाली धीरे धीरे करके खत्म होने लगी थी और गांव की कई पीढ़ी बीत चुकी थी पर गांव के हालात में कोई सुधार नही आया।
और आज भी उस गांव की आबादी लगभग 500 की ही थी
उन पांच सौ लोगो के बीच रामु और गोमती दोनों मियां बीवी निवास करते थे। रामु बड़ा ही भोलाभाला और शिवभक्त था वह हर रोज शिव जी की पुजा किया करता था गांव में पानी नही पर भी वह दूसरे गांव से जल लाकर शिव जी की पूजा किया करता था,
भगवान शिव उसकी भक्ति से बहुत प्रसन्न था और एक रात शिव जी उनके सपने में आये और कहा कि बहुत जल्द इस गांव की समस्या दूर होने वाली है माता गंगा तुम्हारे पुत्री के रूप में इस गांव में आएंगी और कहा कि इस बात को तुमको किसी से नही कहनी है। और रामु का सपना टूट गया।
रामु और गोमती दोनों एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे,
और दोनों उस दुख से भरे गांव में अपना जीवन खुशी से जी रहे थे।
उनकी शादी को लगभग 7 साल हो गया था उनकी कोई संतान नही थी परंतु शिव जी के सपने में आने के कुछ समय बाद गोमती पेट से हो गई।
धीरे धीरे समय बिता फिर देखते ही देखते बच्चे का जन्म का समय आ गया था,
और फिर उस दिन आधी रात को अचानक से गोमती को प्रसव पीड़ा शुरू हो गया,
घने जंगल के बीच बसे गांव में तेज आंधी तूफान के साथ जोरदार बारिश हो रही थी।
जंगलों बीच बसे होने के कारण वहाँ किसी प्रकार की एम्बुलेंस और अस्पताल जैसी सुविधाएं नही थी,
उस गांव में अभी भी दाई के द्वारा ही डिलीवरी कराया जाता था,
मगर समय आधी रात का था ऊपर से तेज बारिश और आंधी-तूफान था।
रामु और उनकी पत्नी बहुत घबराये हुये थे की अब क्या होगा कैसे होगा कहा जायें किसको बुलाये।
यह उनका पहला बच्चा भी था उनको किसी भी प्रकार से कोई अनुभव भी नही था।
इसलिये वो लोग और भी घबराये हुये थे और ईधर गोमती  प्रसव पीड़ा सहन नही कर पा रही थी पत्नी की पीड़ा देख रामु चीख-चीख कर रोने लगा,
बारिश और तूफान की वजह से रामु की आवाज भी कोई सुन नही पा रहा था,
रामु के घर से दस घर के बाद दाई का घर था पर मौसम के बहुत ज्यादा खराब होने के कारण घर से बाहर निकल पाना बहुत मुश्किल हो रहा था।
पर जैसे-तैसे करके रामु दाई के घर पहुँचता है और दाई को सारी बाते बताते हुए उनसे घर चलने को कहता है।
मौसम खराब होने के कारण दाई उसके साथ जाने से मना करती है,
क्योकि उस दिन से पहले गांव कभी भी ऐसी बारिश नही हुई थी,
बादल जोर-जोर से गरज रहे थे और बिजली भी बहुत भयावह थी। पुरे गांव में डर फैल चुका था बाढ़ की स्थिति
बन चुकी थी।
उधर रामु की पत्नी गोमती दर्द के मारे तडप रही थी,
रामु ईधर दाई से जल्दी चलने की आग्रह कर रहा था उसके सामने हाथ जोड़ रहा था और रामु के बार-बार आग्रह पर अंत मे दाई चलने को तैयार हुई,
लेकिन बाहर जाने के लिए जैसे ही दरवाजा खोला तो देखा कि पुरा का पुरा रास्ता नदी में बदल चुका था,
यह देख दाई ने फिर से उनके घर जाने को मना कर दिया पर रामु हिम्मत नही हारा और दाई को बोला कि वह उनको अपने कंधे पर लेकर जायेगा।
रामु ने दाई को अपने कंधे पर बिठाकर नदी बने रास्ते पर घर की ओर चलना शुरू किया।
रामु कुछ दूर ही गया था कि पानी का बहाव और तेज हो गया
उसके सामने कठिन परिस्थि के कारण वह शिव जी को भी भूल गया था।
लेकिन पानी के तेज बहाव में डुबते समय भगवान की सपने में आने वाली बात याद आ गई
और फिर उसका डर थोड़ा कम हुआ फिर उसने भगवान शिव का ॐ नमः शिवाय मन्त्र का जाप करना शुरू कर दिया
और जाप करते करते वो अपने घर की बढ़ने लगा।
और अपनी बीवी की कुशलता के लिए प्रार्थना करने लगा।
रामु धीरे धीरे करके दाई को लेके घर पहुंचा और घर पहुचने के बाद देखा कि घर मे चारो दुध सी सफेद रोशनी फैली हुई है और उसकी बीवी  के बगल में सुंदर सी छोटी कन्या सोई हुई है जिसके शरीर से वह किरणे निकल रही है
दाई यह सब देखकर हैरान हो गई ये तो चमत्कार हो गया करके और दाई समझ गई कि यह कोई साधारण कन्या नही है जिसके जन्म होने पर गांव की किस्मत बदल सी गई है।
जिस कन्या के जन्म से बरसो की प्यास बुझ जाए वो तो सिर्फ गंगा मैया ही हो सकती है करके उस नवजात की चरणों मे गिरकर रोने लगी और वहा की रोशनी भी धीरे धीरे से कम हो गई।रोशनी के खत्म होते ही वहाँ पर घटी घटनाओं को भी भूल गई
इधर रामु और गोमती अपनी बेटी के जन्म से बहुत खुश थे
और एक बार फिर से बंजरपुर बने नीरपुर में गंगा का आगमन हो गया पुरी रात बारिश हुई और शुबह लोगो ने देख की उनका जो गांव बंजरपुर बन गया था वह एक बार पुनः नीरपुर बन गया है इधर रामु के घर उस कन्या के जन्म से उसके घर मे लक्ष्मी जी का वास हो गया।
कुछ दिन बाद रामु और गोमती ने अपनी बेटी का नामकरण का आयोजन किया जिसमें उन्होंने पुरे गांव को आमंत्रित किया था और रामु ने इस आयोजन को भगवान शिव की मंदिर में रखा था जहाँ उन्होंने पुरे गांव वालों के साथ मिलकर भगवान शिव की पुजा आराधना की और उस कन्या का नाम गंगा रखा।
जहां पर लोगो को पता चला कि उस कन्या का उसी रात को हुई थी जिस रात तेज बारिश हुई थी तो लोगो के मन मे रामु और उसके परिवार के लिए इज्जत बड़ गई ।
इन्होंने पुरे गांव को एक नया जीवन दिया है गंगा सच मे माता गंगा ही है।
और वहाँ के लोगो ने रामु को गांव का मुखियाँ बना दिया और उनकी बात सुनने लगे और अपने गांव और मन्दिर की अच्छे से देखभाल कर अपने गांव को स्वर्ग बना कर जीवन यापन करने लगे।
अशवनी कुमार साहू *ऑस्टीन*


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