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Showing posts from June, 2020

चीन पर चुप रह गये।

चीनी सामान का बहिष्कार करना देश के नागरिकों से कह गये, खुद तो प्रचार किये है चीन का क्यो वो दिग्गज सैनिकों की , बलिदान के बाद भी चुप रह गये। जो हमने विक्रय किया है, उसको तोड़ जलाने से अपना ही नुकसान है, दुबारा नही करे उस पर भरोसा  वाली गलती तो देश की शान है। बहकावें में न आये रखे भले बुरे का ज्ञान, चीनियों का बहिष्कार कर दे वीरो  की शहादत को दिल से सम्मान। चीनी एप्लिकेशन को हटाना है, ये तो छोटी मछली है। देश मे कुछ लोग झूठे है और कुछ  है नकली, देश की बड़ी संस्था ने वीवो से जो  सम्बन्ध स्थापित किया है उन सबको भी यही तो असली है। अशवनी कुमार साहू*ऑस्टीन*

प्रेम एक क्रांति है

मन उनसे मिलने की तड़प आग सी जल रही, न कही पर मिल रही कोई प्रेम शांति है, न रोको तुम प्रेमियों को, प्रेम एक क्रांति है। चल पड़ा है प्रेम की राह में, दोनों एक-दूसरे से मिलने को, रुकावट मत बनो इनके राह में, प्रेम की आग को डिलने को, न कर कोशिश तू इनके प्रेम में फैलाने को भ्रांति, न रोको तुम प्रेमियों को, प्रेम एक क्रांति है। अशवनी कुमार साहू *ऑस्टीन*

अगर तुम साथ हो

दुनियां में मुझे किसी बात गम नही, बोले कुछ कोई मुझे इतना किसी मे दम नही, लड़ लेंगे दुनियां के सभी ताकतों से, अगर तुम साथ हो। जीवन में हर दुःख से मुक्त हूँ, जिंदगी के राह में मैं कही भी तंग नही, जीवन है मेरा प्रेम से भरा, अब मेरा किसी से कोई जंग नही, अगर तुम साथ हो। प्रेम ने मुझे मुक्त किया कोई मुझमे मोह का बंधन नही, चिर के देख ले आ दिल मेरा तेरे सिवा इसमे कोई और नही, खुशी का अहसास होता है, जमाने के दर्द देने पर, अगर तुम साथ हो। पहले अकेले ही सब कुछ था मैं, अब तुम्हारे बिना कुछ हम नही, ऐसा लगता है तुम्हारे एक नजर देख लेने से जिंदा है हम, दुनियां के औजारों में हमे मारने का कोई दम नही, अगर तुम साथ हो। भूख प्यास भी मर जाती है कई-कई दिनों तक, जिंदा रहते है तुमको देखकर, लौट आता हूँ मौत के मुंह से, चमकता हुआ तेरा मुँह देखकर, अगर तुम साथ हो। अशवनी कुमार साहू *ऑस्टीन*

समय का असर

वक्त का पहिया ऐसा घुमा, कि सारे राजा रंक हो गये। बहुत घमण्ड था तुमको अपनी दौलत पर, अब किस पर करोगे गुरुर, तेरा कुछ नही रहा यहां था वो सब खो गए। अशवनी कुमार साहू*ऑस्टिन*

सपनो की समय यात्रा

शाम का समय था और शीतल ठंडी हवाएं चल रही थी जहां खुले आसमान के नीचे जहां तक नजर जा रही थी हर तरफ सुंदर हरी घास  से सजा हुआ मैदान दिखाई पड़ रहा था। उस मैदान पर मैं बिना चप्पल के ही टहल रहा था घास के ऊपर टहलने से ऐसा महसूस हो रहा था मानो मखमली चादर बिछा हुआ हो। टहलते-टहलते मुझे थोड़ी सी थकान महसूस हुई और मैं सुस्ताने के लिए मख़मल सी हरी घास के ऊपर अपनी थकान दुर करने के लिये लेट गया। मैदान में मखमली घास पर लेटने के बाद शीतल हवाओं का स्पर्श बहुत ही शांति देने वाला था। लेटे-लेटे अचानक से मेरी आँख बंद हो गई और मैं उस मैदान के ऊपर ही सो गया। और गहरी नींद में खो गया। मैं नींद में ऐसे खोया की आस-पास क्या चल रहा है ध्यान ही नही रहा। और मैं सपनो की दुनियां में निकल पड़ा समय की यात्रा पर। मैं सपनो में खोये हुए पहुँच गया भूतकाल के राजा और महाराजाओ की दुनिया मे जहां पर मैंने प्रवेश किया एक बहुत ही सुंदर नगरी में जो पुरी तरह से सोने का बना हुआ था। जहां कई प्रवेश दुवार बने हुये थे और हर दरवाजे पर दुवारपाल खड़े हुये, और फल-फूल से सजे हुए वहां के सुंदर बगीचे जहां पर मैने कई मीठे फल खाये फिर थो...

मैं कौन हूँ।

मैं कौन हूँ ? मैं क्या दो हाथ-पैर, एक नाक, दो कान, एक मुँह,बीस उंगलियां, एक जीभ, बत्तीस दांत, जीव हूँ। मैं कौन हूँ ? मैं क्या सामाजिक, असामाजिक, धार्मिक, धर्मी, अधर्मी, राजनीतिक, धन के लोभी, कामी, क्रोधी, मूर्ख, समझदार, दुष्ट, अच्छा, अहंकारी, षडयंत्र कारी, पाप पुण्य, लाभ-हानि, निर्मोही, मोह में जकड़ा हुआ प्राणी हूँ। मैं कौन हूँ ? मैं क्या पांच तत्व हूँ, जल, अग्नि, वायु, मिट्टी, आकाश, न तलवार, न हवा, न पानी, न आग मिटा सकती है, मैं अजय अमर, न मरने वाला उस परमात्मा का अंश आत्मा हूँ। *अशवनी साहू*

दो अजनबी

उन दिनों आशी अपनी बारहवीं की पढ़ाई पूरी कर चुका था और आगे पढ़ना चाहता था पर वह बहुत ही शर्मीला लड़का था और घर की हालात ठीक नही होने के कारण अपनी आगे की पढ़ाई के लिए चिंतित था, घर की जिम्मेदारी भी उसके ऊपर था।शर्मिला होने के कारण वह अपनी बात किसी से नही कर पा रहा था। फिर आशी ने इस बात को लेकर अपने दोस्तों के साथ चर्चा की, दोस्तों ने बताया की वह शहर जाकर काम के साथ-साथ अपनी आगे के पढ़ाई पुरी कर सकता है। उसके बाद आशी ने शहर जाने की बात घर वालो को बताई की वह शहर जाकर काम करना चाहता है और साथ ही साथ अपनी पढ़ाई भी पुरी करना चाहता है। घर के हालात को ठीक करने लिए आशी अपने माता-पिता के सामने अपनी पेशकश रख दिया था। पर ऐसे अकेले बेटे को शहर भेजना माता-पिता को ठीक नही लग रहा था क्योंकि वह शहर के लिये नया था माँ को चिंता होने लगी मन मे हजारो सवाल रह रहकर उठने लगे। पर आशी का शहर जाना तो समय की मांग थी। अन्ततः आशी अपने मन मे हजारो सपने लिए शहर पहुंच गया, जहां पर उसने अपने लिये एक छोटी सी नौकरी ढूंढ़ लिया और कॉलेज में भर्ती भी हो गया और काम के साथ उसने अपनी आगे की पढ़ाई शुरू कर दी। साथ ही घर ...

शुशांत को समर्पित

ऐ मन था बावरा मंजिल, पाने को बेक़रार रहता था। ऐसी कौन सी चीज चाहत थी, कि मौत को गले लगा बैठे। सबको पता है बेवजह कुछ भी नही होता साहब, बारिश होने के लिए जमीं को तपना पड़ता है। तेरी ऐसी कौन सी चाहत थी कि मन बावरे मौत को गले लगा बैठे। बचपन था तो खेलकूद को उतावलापन रहता था, स्कूल में अच्छे परिणाम के लिये  पागल रहता था। कालेज गए पढ़ाई छोड़ सुंदरियों पीछे दीवाना रहता था। ऐसी कौन सी चाहत थी, कि मन बावरे मौत को गले लगा बैठे। पुरी मेहनत के बाद अभी तो किस्मत ने साथ देना शुरू किया था, बहुत कुछ पाना अभी बाकी था, कुछ पा लिया था। मंजिल से दुर ही सही पर उसको आंखों से देख लिया था, ऐसी कौन सी चाहत थी, कि मन बावरे मौत को गले लगा बैठे। चमकने लगे थे आसमां में, सितारों की तरह, क्यो बुझने दिया तूने अपने, लौ को दीप जैसे। जगह बनाकर करोड़ो दिल मे, राजा बन राज करने लगे थे। तेरी चमक को सिर्फ देखने के, खातिर करोड़ो आंखे जगे थे। ऐसी कौन सी चाहत थी, कि मन बावरे मौत को गले लगा बैठे। जवा दिलो की धड़कन थे, सुंदरियों के बने तुम तड़पन थे। हर उम्र के लोगो मे त...

सच

मैं हमेशा कहता था, कि नही देखता। यही बोल-बोल कर हर रोज था फेकता। कहने को यह बात है, बहुत ही बुरी। लोग चौराहें पर बैठ अपनी आंखे है सकता। लोग कहते है किसी की, बहन बेटियों को देखना, गलत बात है। पर वो खुद ही सबको, गलत निगाहों से देखता। *अशवनी साहू*

तेरी मेरी कहानी

कुछ इस कदर शुरू हुई तेरी मेरी कहानी, मैं तेरे लिये था अनजाना तुम थी मेरे ख़ातिर अनजानी। मिले जो पहली दफ़ा तो गिरना शुरू हुआ था, बरसात की रिमझीम पानी कुछ इस कदर शुरू हुई तेरी मेरी कहानी। हमारे मिलन का दृश्य देख कुछ इस कदर हुआ असर कि सारा जहाँ हुई दीवानी, कुछ इस कदर शुरू हुई तेरी मेरी कहानी। बाली उमर में लोग अक्सर कर गुजर जाते है नादानी, हम-उम्र थे दोनों जो कुछ इस कदर शुरू हुई तेरी मेरी कहानी। *अशवनी साहू*

तेरा अपराधी

की उनसे मोहब्बत पर न कर पाया उनसे शादी, गोरी तेरे प्यार में बन गया मैं तेरा अपराधी। तेरे संग जीवन बिताने का देखता रहा सपना, वो पुरा न हुआ रह गया आधी गोरी तेरे प्यार में बन गया मैं तेरा अपराधी। तेरे खातिर लड़ा घर वालो से और लड़ा सारे जमाने से, पर दिल मे है कही बेताबी गोरी तेरे प्यार में बन गया मैं तेरा अपराधी। जलता रहता हूँ तेरे प्यार में जैसे जल रहा हो दिप-बाती, गोरी तेरे प्यार में बन गया मैं तेरा अपराधी।      *अशवनी साहू*

ना बोले तुम ना मैंने कुछ कहा

ना बोले तुम ना मैंने कुछ कहा मेरे दिल ने तुम्हारे दिल को सुना, तुम्हारे दिल ने मेरे दिल को सुना। ना बोले तुम ना मैंने कुछ कहा, ये प्यार की बाते है जो मन मे, बिना बोले दिल ने दिल को सुना। ना बोले तुम ना मैंने कुछ कहा, न कोई भाषा है न लब्ज प्रेम की, प्यार के लब्जो को प्यार से बना। ना बोले तुम ना मैंने कुछ कहा, प्यार उनको भी होता है जिनको जुबाँ नही होती। *अशवनी साहू*

प्यार का नगमा

प्यार का नगमा होने से, जीवन खुशहाल हो जाती है। नैनो में सपने सजाये प्रेमी, प्रेम गीत गुनगुनाती है। प्यार का नगमा जीवन मे, प्रेम के फूल खिलाती है। प्रेम का भौंरा उस पर, मन-ही-मन गीत गुनगुनाती है। प्यार का नगमा कड़ी धूम में, प्रेम की बारिश गिराति है। इसके होने से दो प्रेमियों की, मिलने की तड़प और बड़ जाती है। *अशवनी साहू*

तेरी नीली आंखे

तेरी नीली आंखों में डूबकर, प्रेम का वृक्ष लगायेंगे। प्रेम वृक्ष के नीचे बैठकर, प्यार के गीत गुनगुनायेंगे। झील सी है तेरी नीली आंखे, शीतल बह रही प्रेम की हवा। लहरे सी उठ रही है आंखों में, रोग मुक्त कर रही है प्रेम हवा। प्रकृति की सुंदरता दिख रही है तेरी गहरी नीली आंखों में, तडप बड़ गई है देखकर आजा भर लू  तुमको बाहों में। *अशवनी साहू*

अधूरा सपना

तुम्हे पाने की जो देखा था, वो सपना अधूरा रह गया। होने वाला था पुरा सपना, उसको अधूरा कर गया। तुमको पाना जैसे मेरे लिए, चाँद को पाना था। तू तो मेरे लिए प्यार से, भरा हुआ कोई खजाना था। हर पल सोते जागते देखता था, बस तुम्हे पाने का अधूरा सपना। अकेला सा हो गया हूँ तुम्हारे, प्यार में नही है कोई अपना। दुवा है ऊपर वाले से तुम खुश, रहो हमेशा चाहे अधूरा रहे सपना। तुम आसमान की चाँद,    मैं जमी का तारा। लगता है कि सच मे,  रह जायेगा अधूरा सपना हमारा। **अशवनी साहू**

मुझे तुमसे प्यार नही था

मुझे तुमसे प्यार नही था, देखने के बाद तेरा चेहरा, नींद कही तो चैन कही था । जिसे मैंने चाहा ऐसा लगा      कि वो तुम नही, दिलो-जान से चाहती हो तुम      मुझे ऐसा कह रही। मिली तेरी नजरो से मेरी नजर  वो मुझसे कुछ कह रही, समन्दर से भी है तेरा प्यार आंखों में प्यार बह रही।   *अशवनी साहू*

मुझे तुमसे प्यार नही।

मुझे तुमसे प्यार नही ये मैं कहता रहा, चुपके-चुपके मैं तुम्ही से प्यार करता रहा। अपने मन-ही-मन में उठें विचारो से लड़ता रहा, क्या कहेगा जमाना इसी बात से डरता रहा। तड़प-तड़प कर तुमको पाने के लिये मरता रहा, पर फिर ना जाने मैं तुमसे प्यार नही कहता रहा। मोहब्बत के समंदर में प्यार की लहर बहता रहा, सिर्फ तेरे प्यार के खातिर सारे दुःख सहता रहा। ^*अशवनी साहू*^

शेर

घिरा हुआ हुँ समंदर के बीच मे तुम बस्ती ना बसा लेना क्योकि इन लहरों को चीर कर वापस आऊंगा। *अशवनी साहू*